@अंशुल मित्तल ग्वालियर।ग्वालियर नगर निगम की भवन शाखा में व्याप्त भ्रष्टाचार, अभी हाल ही में हुई घटना से साबित होता है, जिसमें आवेदक को भवन निर्माण मंजूरी देने के एवज में निगम के क्षेत्राधिकारी उप्पल भदोरिया अपने सहयोगियों के माध्यम से रिश्वत की रकम वसूलते रंगे हाथों पकड़े गए, यह कार्रवाई लोकायुक्त द्वारा की गई हालांकि इसके बाद क्षेत्राधिकारी को निलंबित और उनके सहयोगी को सेवा से पृथक किया गया। लेकिन क्या निगमायुक्त, विभाग में भ्रष्टाचार रोकने के लिए, लोकायुक्त जैसी एजेंसियों पर ही निर्भर रहते हैं ? यदि ऐसा नहीं है, तो यह निलंबन की कार्रवाई तब क्यों नहीं की जाती जब भवन निर्माण मंजूरी की फाइलें निर्धारित समय सीमा से अधिक समय तक रोकी जाती हैं ? आपको बता दें कि भवन शाखा में भ्रष्टाचार के मामले लगातार सामने आते रहे हैं,
जिसमें किसी धवन मालिक को भवन अधिकारी क्षेत्राधिकारी के हस्ताक्षर से 24 घंटे और 6 घंटे की समय सीमा के नोटिस जारी किए जाते हैं, इन नोटिसों में भवन निर्माण को अवैध या फिर मंजूरी के विरुद्ध बताकर कार्यवाही का भय पैदा किया जाता है, लेकिन कार्यवाही नहीं की जाती, ऐसे ही कुछ मामलों से आपको अवगत कराते हैं जिनसे ऐसा प्रतीत होता है कि विभागीय प्रक्रिया को हथियार बनाकर की जाती है ब्लैकमेलिंग
पहला मामला-मामला क्षेत्रीय कार्यालय क्रमांक 14 वार्ड क्रमांक 29 के अंतर्गत अलकापुरी क्षेत्र का है जहां नरेश गुप्ता द्वारा रिहायशी भवन निर्माण मंजूरी के विरुद्ध जाकर बहुमंजिला व्यवसायिक भवन का निर्माण किया जा रहा है, क्षेत्राधिकारी अनिल श्रीवास्तव द्वारा दिनांक 11/04/2023 को इन्हें 24 घंटे की समय सीमा का नोटिस जारी किया गया लेकिन आज तकरीबन 3 महीने बीत जाने के बाद भी किसी तरह की कार्यवाही ना किए जाना कहीं ना कहीं नोटिस द्वारा की जाने वाली सेटलमेंट प्रक्रिया को दर्शाता है।
दूसरा मामला-क्षेत्र क्रमांक 14 से वार्ड क्रमांक 60 के अंतर्गत आने वाले सचिन तेंदुलकर मार्ग क्षेत्र में सुनीता जैन नामक भवन मालिक को, मंजूरी के विरुद्ध भवन निर्माण किए जाने के संबंध में 24 घंटे की समय सीमा का नोटिस दिनांक 5/6/2023 को जारी किया गया था, यहां भी क्षेत्रीय अधिकारी अनिल श्रीवास्तव द्वारा आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। क्या यहां भी हो गया सेटलमेंट
तीसरा मामला- मामला क्षेत्रीय कार्यालय क्रमांक 19 वार्ड क्रमांक 44 का है जहां विजेंद्र सिंघल नामक भवन मालिक द्वारा रिहायशी भवन निर्माण मंजूरी के विरुद्ध व्यवसायिक भवन का निर्माण किया गया, बताया जा रहा है कि तत्कालीन भवन अधिकारी पवन शर्मा और क्षेत्राधिकारी सत्येंद्र सोलंकी द्वारा इन्हें नोटिस तो जारी किए गए लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई, यहां भी स्थिति संदिग्ध!
यह विस्तृत जांच किए जाने का विषय है कि किन भवन अधिकारी और क्षेत्रीय अधिकारियों द्वारा भवन निर्माण मंजूरी की फाइलें समयावधि से ज्यादा रोकी गई और विगत वर्षों में विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों से 24 घंटे और 6 घंटे की समय अवधि के कितने नोटिस जारी किए गए और कितनों पर कार्रवाई की गई ? लेकिन ना जाने क्यों लिखित शिकायतों के बावजूद निगमायुक्त इन अधिकारियों के सामने बेबस लगते हैं और निगम में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोकायुक्त और ईओडब्लू जैसी एजेंसियों के भरोसे बैठे दिखाई देते हैं!