भोपाल। मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय (नगर निगम, नगर पालिका एवं नगर पंचायत) चुनाव की तैयारियां युद्ध स्तर पर शुरू हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फैसला लिया है कि महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव डायरेक्ट होगा। सनद रहे कि कमलनाथ सरकार ने इस प्रक्रिया को बदल दिया था। महापौर एवं नपाध्यक्ष का चुनाव पार्षदों के माध्यम से करवाने का कानून पारित कर दिया था।
मध्य प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने 13 मई काे देर शाम इसका ड्राफ्ट तैयार कर विधि विभाग को भेज दिया है। NOC मिलते ही शेष प्रक्रिया पूरी करके अधिसूचना जारी होने से पहले अध्यादेश लागू कर दिया जाएगा। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मौजूदा व्यवस्था में नगर निगम के महापौर और नगर पालिका व नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही होगा। पहले महापौर और पार्षद के लिए अलग-अलग मतदान होता था, लेकिन कांग्रेस ने इस व्यवस्था को बदल दिया।
विपक्ष में रहते हुए BJP ने इसका काफी विरोध किया, पर तत्कालीन राज्यपाल ने संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए अध्यादेश और फिर विधेयक को अनुमति दे दी थी। यही वजह है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से नगर पालिका आलीराजपुर और नगर परिषद लखनादौन का चुनाव कराया जा चुका है।
BJP सूत्रों ने बताया कि संगठन की मंशा हमेशा महापौर व अध्यक्षों को सीधे जनता द्वारा चुने जाने की रही है। शहर की सरकार में कब्जा करने का यह सबसे आसान रास्ता दिखाई देता है। भले ही पार्षदों की संख्या किसी निकाय में कम हो, लेकिन महापौर अथवा अध्यक्ष बीजेपी का होना चाहिए। पार्टी इस पर फोकस करती है। यही वजह है कि प्रदेश की लगभग सभी नगर निगमों में बीजेपी के महापौर रहे हैं।
जानकार मानते हैं कि महापौर-अध्यक्ष यदि पार्षदों में से चुना जाता है तो इस प्रक्रिया में हॉर्स ट्रेडिंग की संभावना ज्यादा रहती है। दोनों पदों को हासिल करने के लिए मोटी रकम का लेन-देन या फिर सेटिंग होती थी। लेकिन प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होने पर इसकी संभावना कम ही रहती है।