@अंशुल मित्तल ग्वालियर।शहर में हो रहे अवैध निर्माण, शासकीय संपत्ति पर अतिक्रमण आदि मुद्दों पर भले ही कार्यवाही ना होती हो, लेकिन कम से कम विभागीय अधिकारियों को बैठकें बुलाने के लिए विषय तो मिल ही जाते हैं और बैठकों में दिए जाते हैं निर्देश, जो कि अधिकतर सिर्फ बैठकों तक ही सीमित रहते हैं! अनगिनत बैठकों और निर्देशों के बावजूद जिले में ऐसे मामले देखने को मिल रहे हैं जहां खुलेआम न सिर्फ अवैध निर्माण होते हैं बल्कि प्रशासन की नाक के नीचे सरकारी जमीनों की खरीद फरोख्त हो जाती है। कुछ ऐसे मामले आपको बताते हैं, जिनमें शासकीय संपत्ति बेच दी गई एवं सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत के बावजूद नहीं हुई कोई कार्यवाही।
दस्तावेज छुपा, बिक गई शासकीय जमीन
पुरानी छावनी क्षेत्र के ग्राम सुसेरा में सर्वे क्रमांक 438 के एक भाग की तकरीबन 8 बीघा जमीन, इस भूखंड का शासकीय पट्टा, तत्कालीन अधिकारी द्वारा अगस्त 1994 में, अनियमिताओं के चलते निरस्त कर दिया गया था, जिसके चलते यह भूमि शासकीय दर्ज होनी चाहिए थी। लेकिन पट्टा (लीज) निरस्त किए जाने के आदेश को छुपाते हुए इस संपत्ति का दो बार सौदा किया जा चुका है और राजस्व विभाग में बैठे जादूगरों द्वारा इस संपत्ति का नामांतरण भी खसरे में कर दिया गया। वर्तमान में यह बेशकीमती, शासकीय संपत्ति महेंद्र सिंह एवं सतविंदर सिंह आदि के नाम से खसरे में दर्ज है।
टीएंडसीपी की जमीन ही घेर ली गई
दैनिक समय जगत द्वारा सर्वप्रथम प्रकाश में लाया गया था, शासकीय सर्वे क्रमांक 201 ग्राम ओहदपुर की तकरीबन 15000 वर्गफुट की जमीन टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग को कार्यालय बनाने के लिए आरक्षित की गई थी इस संपत्ति के एक बड़े हिस्से पर निजी व्यक्तियों द्वारा बाउंड्री वॉल कर ली गई है और बताया जा रहा है कि पंजीयन विभाग से इसकी रजिस्ट्री भी करा ली गई। इस संपत्ति के संबंध में सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत भी की गई लेकिन महीनों बीत जाने के बाद आज तक वह शिकायत एल-1 और एल-2 के बीच झूल रही है! मामला नगर निगम के क्षेत्रीय कार्यालय क्रमांक 14 के क्षेत्राधिकार के संज्ञान में भी दिया जा चुका था।
गौर करने वाली बात यह है कि नगर निगम और जिला प्रशासन स्तर पर अवैध निर्माण आदि मुद्दों के खिलाफ बैठकें तो की जाती है और बैठकों में निर्देश दिए जाते हैं कि संबंधित शिकायतों पर तत्परता से कार्रवाई करें! लेकिन इतने ज्वलंत और प्रत्यक्ष मुद्दे सामने होते हुए भी इन पर कोई कार्यवाही न होना, बड़ी गड़बड़ी की ओर इशारा करता है। हालांकि असल स्थिति को देखते हुए, खबर में बताए गए मामले, सिर्फ उदाहरण कहे जा सकते हैं।