बैराड- नगर परिषद क्षेत्र के पुराने बैराड में श्री पीपल वाले हनुमान जी के मंदिर पर ओझा परिवार द्वारा श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन धूमधाम से चल रहा है। इस धार्मिक आयोजन में आए कथा व्यास पंडित वटुक आचार्य द्वारा श्रीमद् भागवत कथा का प्रवचन किया जा रहा है। कथा के चौथे दिन भगवान श्री प्रहलाद और हिरणाकश्यप के बीच हुए संवाद ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया व्यास ने हिरण्यकश्यप के कर्मों की विस्तार से चर्चा की
कथा व्यास वटुक आचार्य ने भगवान प्रहलाद की भक्ति और हिरणाकश्यप के दुष्कर्मों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि कैसे भगवान प्रहलाद ने भगवान श्री विष्णु की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया और हिरणाकश्यप के नापाक इरादों के बावजूद सत्य और धर्म की विजय सुनिश्चित की। कथा के इस प्रसंग को सुनकर पंडाल में मौजूद श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए और उनके दिलों में भक्ति और श्रद्धा की लहर दौड़ गई।
हिरण्यकश्यप को अभिमान था, कोई नहीं मार पाएगा
व्यास ने बताया कि भक्त प्रह्लाद, हिरण्यकश्यप का बेटा था, जिसे अपने पिता के राक्षसी प्रवृत्तियों के बावजूद भगवान श्री विष्णु का भक्ति भाव बचपन से ही समाया हुआ था। एक ओर जहां हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा से विशेष वरदान प्राप्त किया था, वहीं दूसरी ओर उसका अहंकार उसकी नाश का कारण बना।
हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा से एक ऐसा वरदान प्राप्त किया था, जिसे सुनकर वह आत्ममुग्ध हो गया। भगवान से वरदान मिला था कि वह किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारा जा सकेगा, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में। इसके बाद तो हिरण्यकश्यप को लगा कि अब वह अमर हो चुका है, और कोई उसे हरा नहीं सकता।
भगवान विष्णु ने लिया नरसिंह अवतार और हिरण्य को चीर दिया
परंतु, भगवान की लीला अपरंपार होती है। भक्त प्रह्लाद ने अपनी भक्ति के बल पर यह साबित किया कि भगवान के सामने कोई भी शक्ति, चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो, बेकार है।
वह दिन दूर नहीं था, जब भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप के अहंकार को चूर-चूर कर दिया, और यह सत्य सिद्ध हो गया कि ईश्वर के वरदान से बढ़कर कोई शक्ति नहीं होती। भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार देकर हिरण्य का वध कर दिया। भगवान विष्णु ने अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ दिया। इस प्रकार एक दुराचारी राक्षस का अंत हो गया। ओझा परिवार द्वारा श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है। सैकड़ों की संख्या में लोग प्रतिदिन इस धार्मिक आयोजन में शामिल होकर भगवान राम और श्री कृष्ण की लीलाओं का रसपान करने के लिए पंडाल में उपस्थित रहते हैं।