शिवपुरी।नियम तो बस दीवारों पर टंगे होते हैं, क्रेशर संचालकों के लिए नहीं।खनिज विभाग आँखें बंद किए बैठा है और क्रेशर मालिक पहाड़ की छाती चीरकर मुनाफा बटोर रहे हैं। इजाजत 6 मीटर खुदाई की, लेकिन ज़मीन में 20 मीटर तक घुसकर पत्थर निकाले जा रहे हैं। लगता है, क्रेशर वालों के लिए खनन नहीं, बल्कि “गुप्त खजाने की खोज अभियान” चल रहा है।
बदरवास की बामौर और अटलपुर की पहाड़ियाँ अब समतल ज़मीन बन चुकी हैं — मानो पहाड़ों ने खुद आत्मसमर्पण कर दिया हो!
प्रशासन और खनिज विभाग इस पूरी तबाही को देखकर शायद यही सोचते हैं – “नज़रअंदाज़ ही सच्चा समाधान है।”
दिन में ट्रैक्टर दौड़ते हैं, रात को ब्लास्टिंग होती है, और नियम बेचारे बैठते हैं मुंह लटकाए – “हम तो कागज़ों में ही अच्छे लगते हैं।”
पर्यावरण के नाम पर औपचारिकता:
पौधे लगाना ज़रूरी था, लेकिन शायद कागज़ के पौधे ही लगाए होंगे।
सिंचाई होनी थी धूल रोकने को, लेकिन यहाँ तो सिर्फ “मुनाफे की फसल” सींची जा रही है।
तीन तरफ दीवार होनी थी, मगर यहाँ कानून की दीवार ही गिरा दी गई है।
मजदूरों का स्वास्थ्य?
हर 6 महीने जांच होनी चाहिए, मगर असल में तो धूल ही इनका हेल्थ प्लान बन चुकी है।
क्रेशर संचालक पूछते हैं – “स्वास्थ्य चेकअप क्यों कराएं जब 24×7 पत्थर का व्यायाम मिल रहा हो?”
नियमों की किताबें और हकीकत:
नियम कहते हैं – SPCB से अनुमति लो, ग्रीन बेल्ट योजना अपनाओ, गाँव-नदी-जानवर को नुकसान न पहुँचाओ!
क्रेशर संचालक कहते हैं – “हमने ‘कागज़ी नियमों’ को भी रिवर्स क्रश कर दिया है।”