Home Editor's Pick न्याय का इंतजार, परिवारों पर भार: शिवपुरी के शिक्षकों की व्यथा

न्याय का इंतजार, परिवारों पर भार: शिवपुरी के शिक्षकों की व्यथा

शिवपुरी। शिवपुरी में शिक्षा विभाग के तहत 2021 में नियुक्त किए गए वर्ग 1, 2 और 3 के हजारों शिक्षक अपनी परिवीक्षा अवधि पूरी होने के बावजूद वेतन वृद्धि और नियमितीकरण के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शासकीय नियमानुसार, परिवीक्षा अवधि पूरी होने के बाद शिक्षकों का वेतन निर्धारण किया जाना अनिवार्य है, जिससे उनके मासिक वेतन में वृद्धि होती है और उन्हें पूर्व की अवधि का एरियर भी मिलता है। हालांकि, शिवपुरी के ये शिक्षक पिछले कई महीनों से इस अधिकार से वंचित हैं, जिससे उनके वित्तीय भविष्य और उन पर आश्रित परिवारों पर गहरा संकट आ गया है।

कमेटी की रिपोर्ट 7 महीने से ‘बंद’, DPI और CPI के आदेश भी बेअसर

शिक्षकों की इस समस्या के समाधान के लिए जिला शिक्षा विभाग शिवपुरी ने एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी को शिक्षकों के वेतन निर्धारण और एरियर भुगतान से संबंधित सभी आवश्यक प्रक्रियाएं पूरी करनी थीं। हैरानी की बात यह है कि कमेटी ने अपना काम करीब 7 महीने पहले ही पूरा कर लिया था और संबंधित दस्तावेज उच्च अधिकारियों को सौंप दिए थे। इसके बावजूद, इस महत्वपूर्ण मामले पर कोई अग्रिम कार्रवाई नहीं हुई है।

इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि लोक शिक्षण संचालनालय (DPI) और आयुक्त, लोक शिक्षण (CPI) जैसे शीर्ष कार्यालयों से भी इस विषय पर कई बार आदेश जारी किए गए हैं। इन आदेशों में स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया था कि परिवीक्षा अवधि पूर्ण करने वाले शिक्षकों के संबंध में आवश्यक कार्रवाई तत्काल सुनिश्चित की जाए। इन उच्च-स्तरीय निर्देशों के बावजूद, शिवपुरी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय द्वारा इन आदेशों की लगातार अनदेखी की जा रही है, जिससे विभागीय अनुशासन पर सवाल उठ रहे हैं।
भ्रष्टाचार की आशंका और लापरवाही का आरोप
इस पूरे प्रकरण ने शिक्षा विभाग के भीतर संभावित अनियमितताओं को उजागर कर दिया है। यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह सिर्फ विभागीय अधिकारी की घोर लापरवाही और उदासीनता का परिणाम है, या फिर इस आदेश को पारित करने के पीछे किसी प्रकार के वित्तीय लेन-देन का खेल चल रहा है। शिक्षकों और उनके परिवारों को न केवल आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि उनके भविष्य पर भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।

यह समय है कि शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी इस गंभीर मामले का तत्काल संज्ञान लें। उन्हें न केवल शिक्षकों का बकाया वेतन और एरियर शीघ्र अति शीघ्र जारी करने के निर्देश देने चाहिए, बल्कि इस विलंब के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई भी करनी चाहिए। यह केवल शिक्षकों के नैतिक उत्थान का प्रश्न नहीं है, बल्कि शिक्षा विभाग की प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए भी परम आवश्यक है।