शिवपुरी। एक महत्वपूर्ण फैसले में, माननीय न्यायालय ने दहेज प्रताड़ना के आरोपों से घिरे एक व्यक्ति को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया है। यह फैसला सबूतों की कमी और बचाव पक्ष के मजबूत तर्कों के आधार पर आया। अभियुक्त की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुनेश मिश्रा और प्रदीप यादव ने सफलतापूर्वक पैरवी की।
क्या था मामला
मामला महिला थाने में वर्ष 2024 में दर्ज हुआ था, जब एक महिला ने अपने पति और सास पर दहेज के लिए परेशान करने का आरोप लगाया था। महिला की शिकायत के आधार पर, पुलिस ने अपराध क्रमांक 2/2024 के तहत पति और सास के खिलाफ मामला दर्ज किया था। विवेचना पूरी होने के बाद, पुलिस ने माननीय न्यायालय में आरोप पत्र पेश किया, जिसे प्रकरण क्रमांक 87/2024 आरसीटी के रूप में दर्ज किया गया था।
बचाव पक्ष के तर्क और न्यायालय का फैसला
न्यायालय में सुनवाई के दौरान, अभियोजन पक्ष ने आरोपों को साबित करने के लिए कुछ साक्ष्य प्रस्तुत किए। हालांकि, बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुनेश मिश्रा और प्रदीप यादव ने अभियोजन पक्ष के सबूतों की कमियों को उजागर किया। उन्होंने प्रभावी तरीके से न्यायालय के समक्ष तर्क प्रस्तुत किए और कई महत्वपूर्ण न्याय दृष्टांतों (judicial precedents) का हवाला दिया, जिनसे यह साबित हुआ कि अभियुक्त पर लगे आरोप निराधार थे।
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों और प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों का गहन अध्ययन किया। साक्ष्यों के आधार पर, न्यायालय ने पाया कि अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोप संदेह से परे साबित नहीं हो पाए। इसी के चलते, माननीय न्यायालय ने अभियुक्त हरकिशोर को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए (दहेज उत्पीड़न), धारा 506 (आपराधिक धमकी), और दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3/4 के आरोपों से बरी कर दिया।